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 यह जो प्रेशर है न की हर चीज में हर समय हर जगह आपको होना है और अच्छा दिखना है। यह सही नहीं है दोस्तों। कोई भी चीज जैसी भी है अच्छी या बुरी बस वह है। यह सबसे सुन्दर है।  एक बात बता रहा हूँ दोस्तों की अगर अपनी मेन्टल हेल्थ अच्छी रखनी है तो यह प्रेशर लेना छोड़ दो। 
 इश्क वो इश्क ही किया जिसमें जान की बाजी ना लगी हो। प्यार वो प्यार ही किया जिसमें जुदाई ना लिखी हो❤️

बेसब्री

 एक अजीब सी बेसब्री है तेरी आँखों में पर सुकून भी तो उन्ही आँखों में डूब कर मिलता है दिलरुबा।

गुजर चुकी है आधी जिंदगी.......

  गुजर चुकी है आधी जिंदगी मेरी तेरे हसीन तस्सवुर में, एक झलक दिखला दे अब तो कहीं से और कर दे मुझे जवान बाकी की जिंदगी के लिए

जीवन की अनिश्चितताएं एवं कोरोना प्रभाव

पिछले  ७   महीनो  से  पूरे  विश्व   में  और  लगभग  ५   महीनो  से  भारत   में  जो  वातावरण  बना  हुआ  है  कोरोना  विषाणु  के  प्रकोप  से , वह  मेरे  पिछले  लेख  "जीवन  की अनिश्चितताएं " का  ही  कदा  चित  यथार्थ  रूप  है  और  यह  घटनाक्रम  इसको  सिद्ध  भी  करता  है। जिस  भी  पीढ़ी  का जन्म द्वितीय  विश्व  युद्ध (1939) के  बाद  हुआ  है  उनके  लिए  संभवतया  ऐसा  संकट  और  ऐसा  एकाकीपन  वाला  माहौल  पहली  बार  ही  बन  रहा  है , और  इस  माहौल  में  हमारी  ताज़ा  तरीन  युवा  पीढ़ी  को  सबसे  ज्यादा  एकाकीपन  और  अवसाद  का  सामना  करना  पड़ रहा  है  कियोंकि  पिछले  कुछ  दशकों  में  जीवन  की  गति  जिस  तरह  से  परिवर्तित  हुई  है  उसने  इसी  युवा  पीढ़ी  को  अधीर  और  असंवेदनशील यह अत्यधिक संवेदनहीन  बनाया  है। कुछ  हद  तक  इस  बात  में  सच्चाई  नज़र  आती  है  की  कदा  चित  यह  कोरोना  विषाणु  चीन  द्वारा  ही  या तो  निर्मित  है  यह  उनकी  किसी  अनुसन्धान की  गलती  का  नतीजा  है  जिसने  पूरे  विश्व  को  मजबूर  कर  दिया  है  घरो  में  बंद  रहने के  लिए  हालांकि  इस  की  वजह  से  हम  काफ

There is no such thing as "the best"

There is no such thing as "the best", the biggest mistake people make is that they want to choose that which is the best. Whether it is your career, marriage, spiritual choices, ultimate choices- there is no best thing to do in your life. If you put your everything into what you choose to do, it becomes a great thing.

Being Philosophical

Being introvert and being extremist is a deadly combination. It makes you feel yourself good and bad at same time.

Let ourself and India Rise

What is making us so impatient and intolerant in today's so called modern and better era than ever in the history of humankind evolution. Have you ever given a moment to ponder over that. I am sure, you must not. Well, what i found the answer to it is that we are trying to impose our superiority and importance over all others. that's the reason why we always do not give way to others while driving the car or bike. It hit on oneself ego if someone else is trying to drive the car past before you on any cross road, without even thinking that this foolish act will make him/her late as well as others when he/she became the cause of traffic JAM, just for the sake of that 5 seconds wait and let others pass by the turn. That's why i request you all to Please follow simple things mentioned below and inspire others to follow.           Be Courteous      Show Patience while driving      Don’t Honk unnecessarily       विनम्र रहे       वाहन चलते समय धैर्य औ

Creator and Creation of GOD

Indian culture is the only culture of the whole world which has the technology to make our own GODS. 

प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन ही जीवन है

भारत में चिन्तन की सदा दो धाराएं रही हैं। एक धारा है प्रवृत्तिवाद और दूसरी है निवृत्तिवाद। प्रवृत्ति और निवृत्ति- यह वस्तु का स्वाभाविक पक्ष था। इसका अनुभव तो किया गया था, किन्तु अनुभव की कोई बात जब बुद्धि के स्तर पर चर्चित होती है, तब उसकी सूक्ष्मता खत्म हो जाती है, केवल स्थूलता बची रहती है। पूरे संसार में यही हुआ है कि स्थूल तत्व उभर कर सामने आ गए और जो रहस्य और सूक्ष्मताएं थीं, वे नीचे ही छिपी रह गईं। इस तरह प्रवृत्ति और निवृत्ति भी विवाद का विषय बन गया, जबकि इनमें विवाद जैसा कुछ नहीं है। यह जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है। न केवल मानवीय जीवन की, परन्तु संपूर्ण प्राणी जगत की स्वाभाविक प्रक्रिया है। इतना ही नहीं, यह जड़ जगत की भी स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रत्येक पदार्थ में, जड़ या चेतन दो पक्ष होते हैं, पॉजिटिव और निगेटिव या विधायक और निषेधक। कोई भी शक्ति ऐसी नहीं होती, जिसमें ये दोनों न हों। विधायक पक्ष है हमारी प्रवृत्ति और निषेधक पक्ष है हमारी निवृत्ति। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रवृत्ति और निवृत्ति के संतुलन की अपेक्षा की जाती है। जहां कहीं यह संतुलन बिगड़ता है, वहां बड़ी कठि

THE BHAGAWAD GEETA SIMPLIFIED

Dear readers,  I know how typical it to read the full word by word Geeta and even its more difficult to literally understand it easily and thoroughly. Hence here is the simplified Geeta for all of my beloved readers and friends. Hope it will make sense in understanding and even applying it in our life to achieve harmony and contentedness. Please appreciate my work if you find it worthy. Thanks Neelabh Tyagi The Bhagavad Geeta The Divine Song of God Why do you worry without cause? Whom do you fear without reason? Who can kill you? The soul is neither born, nor does it die. Whatever happened, happened for the good; Whatever is happening, is happening for the good; Whatever will happen, will also happen for the good only. You need not have any regrets for the past; You need not worry for the future; The present is happening... What did you lose that you cry about? What did you bring with you, which you think you have lost? What did yo

८० घंटे …………. अद्भुत अनुभव…………

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८० घंटे …………. अद्भुत अनुभव………… काफी सारी अड़चनों के बाद आखिरकार हमारी बहुप्रतीक्षित साहसी यात्रा का संयोग बन ही गया। मैं (नीलाभ) और मेरा मित्र शैलेश २७ मई २०१७ को दिल्ली की तपती गर्मी को छोड़कर एक अत्यंत ही ठंडक भरी और  सुकून  देने वाली यात्रा पर निकलने वाले थे।  यद्दपि  इस यात्रा का मकसद कुछ दिन एक शांत और एकांत वातावरण में व्यतीत करने का था ताकि तन और मन को शांत किया जा सके और शांत मन से वापिस कर्मस्थली में आया जा सके। गौतम बुद्ध ने कहा है  कि “इस अस्थिर विश्व में अपने आप को स्थिर रखो और हर पल हर क्षण को पूर्ण चेतना से जियो”, शायद उसी स्थिरता की खोज इस यात्रा का उद्देशय था, कम से कम मेरे लिए तो था ही। यद्दपि , इतना आसान नहीं था इस यात्रा पर जाना  क्योंकि , कभी मै अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से नहीं जा पा रहा था, कभी शैलेश का परिवार अपने भय की वजह से, जैसे की कार से मत जाओ, बस से जाओ, ज्यादा ऊपर पहाड़ो में मत जाओ। लेकिन मेरा विश्वास है कि सब पूर्व निर्धारित है, इसीलिए हमे इस यात्रा पर जाना था इसीलिए जा पाए।  क्योंकि  पहाड़ो में जाना और खासकर स्वयं कार चलकर जाना

अनिश्चितताओं का महत्त्व

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"क्योंकि जब आपको ये एहसास होने लगता है कि अब कोई भी स्थान आपकी नजर से अछूता नहीं रह गया है, तभी कोई नया मंदिर या फिर धार्मिक-आधयात्मिक-प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान से आपका परिचय हो सकता है।" - नीलाभ त्यागी