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८० घंटे …………. अद्भुत अनुभव…………

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८० घंटे …………. अद्भुत अनुभव………… काफी सारी अड़चनों के बाद आखिरकार हमारी बहुप्रतीक्षित साहसी यात्रा का संयोग बन ही गया। मैं (नीलाभ) और मेरा मित्र शैलेश २७ मई २०१७ को दिल्ली की तपती गर्मी को छोड़कर एक अत्यंत ही ठंडक भरी और  सुकून  देने वाली यात्रा पर निकलने वाले थे।  यद्दपि  इस यात्रा का मकसद कुछ दिन एक शांत और एकांत वातावरण में व्यतीत करने का था ताकि तन और मन को शांत किया जा सके और शांत मन से वापिस कर्मस्थली में आया जा सके। गौतम बुद्ध ने कहा है  कि “इस अस्थिर विश्व में अपने आप को स्थिर रखो और हर पल हर क्षण को पूर्ण चेतना से जियो”, शायद उसी स्थिरता की खोज इस यात्रा का उद्देशय था, कम से कम मेरे लिए तो था ही। यद्दपि , इतना आसान नहीं था इस यात्रा पर जाना  क्योंकि , कभी मै अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से नहीं जा पा रहा था, कभी शैलेश का परिवार अपने भय की वजह से, जैसे की कार से मत जाओ, बस से जाओ, ज्यादा ऊपर पहाड़ो में मत जाओ। लेकिन मेरा विश्वास है कि सब पूर्व निर्धारित है, इसीलिए हमे इस यात्रा पर जाना था इसीलिए जा पाए।  क्योंकि  पहाड़ो में जाना और खासकर स्वयं कार चलकर जाना

अनिश्चितताओं का महत्त्व

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"क्योंकि जब आपको ये एहसास होने लगता है कि अब कोई भी स्थान आपकी नजर से अछूता नहीं रह गया है, तभी कोई नया मंदिर या फिर धार्मिक-आधयात्मिक-प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान से आपका परिचय हो सकता है।" - नीलाभ त्यागी