जीवन की अनिश्चितताएं एवं कोरोना प्रभाव
पिछले ७ महीनो से पूरे विश्व में और लगभग ५ महीनो से भारत में जो वातावरण बना हुआ है कोरोना विषाणु के प्रकोप से , वह मेरे पिछले लेख "जीवन की अनिश्चितताएं " का ही कदा चित यथार्थ रूप है और यह घटनाक्रम इसको सिद्ध भी करता है।
जिस भी पीढ़ी का जन्म द्वितीय विश्व युद्ध (1939) के बाद हुआ है उनके लिए संभवतया ऐसा संकट और ऐसा एकाकीपन वाला माहौल पहली बार ही बन रहा है , और इस माहौल में हमारी ताज़ा तरीन युवा पीढ़ी को सबसे ज्यादा एकाकीपन और अवसाद का सामना करना पड़ रहा है कियोंकि पिछले कुछ दशकों में जीवन की गति जिस तरह से परिवर्तित हुई है उसने इसी युवा पीढ़ी को अधीर और असंवेदनशील यह अत्यधिक संवेदनहीन बनाया है।
कुछ हद तक इस बात में सच्चाई नज़र आती है की कदा चित यह कोरोना विषाणु चीन द्वारा ही या तो निर्मित है यह उनकी किसी अनुसन्धान की गलती का नतीजा है जिसने पूरे विश्व को मजबूर कर दिया है घरो में बंद रहने के लिए हालांकि इस की वजह से हम काफी हद तक इस पर काबू पाने में सफल हो रहे है, विशेष कर भारत जैसे देश में ,जहा लॉक डाउन होने का बाद भी उम्मीद नहीं थी की भारतवासी इतनी अच्छी तरह से सहयोग देंगे, वही दूसरी तरफ इसके कुछ अद्भुत और बेहद सुखद परिणाम भी सामने आ रहे है।
इन दिनों प्रकृति अपने पूरे जोश में फल फूल रही है और हर तरफ मानव कल्याणकारी शुद्ध वायु एवं सकारात्मक ऊर्जा तरंगे उत्त्पन हो रही है।
१ . प्रदुषण का नामो निशाँ नहीं है।
२ . सभी नदियाँ उत्तम रूप से स्वच्छ हो गयी है एवं उनका जल जलीय जीव जन्तुओ के लिए उत्तम है।
३ . हमारे मुज़फ्फर नगर से १२० किलोमीटर दूर स्तिथ कोटद्धार की मनोहर शिवालिक पहाड़ियां लगभग १०० वर्षो के पश्चात दृश्यमान हो रही है।
४ . सम्पूर्ण पृथ्वी को लगभग एक नव जीवन मिल गया हो जैसे।
५ . बहुत संभव है की इस शुद्ध वातावरण से विक्षित हुई ओजोन की परत भी काफी हद तक अपनी पुरानी सही स्थिति में आ जाये , यदि ऐसा हो पाया तो यह बहुत चमत्कारिक एवं सुखद होगा सम्पूर्ण पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र के लिए।
यह लेख लिखने के समय तक प्रमाण आ चुके है वैज्ञैनिको द्वारा की ओजोन परत ने अपने आप को पुनः आदर्श यथा स्थिति में प्राप्त कर लिया है। वास्तव में अविश्वसनीय।
परन्तु यह चीजें सोचने पर भी विवश करती है की जिस सादगी और सरलता, सहजता से पूरे विश्व में मनुष्य आज जीवन व्यतीत कर रहा है , तो किया हम कुछ खो रहे है यह फिर वह चका चोंध वाला जीवन ही सब कुछ है जीने के लिए। इस विचार पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है , कोरोना विषाणु के कहर से निजात पाने के बाद भी। कियोंकि मनुष्य की दीर्घ कालिक भलाई और सद भावनापूर्ण जीवन के लिए यह अत्यंत आवश्यक है की हम इस बात को माने की "हम प्रकृति से है , प्रकृति हम से नहीं "
जिस भी पीढ़ी का जन्म द्वितीय विश्व युद्ध (1939) के बाद हुआ है उनके लिए संभवतया ऐसा संकट और ऐसा एकाकीपन वाला माहौल पहली बार ही बन रहा है , और इस माहौल में हमारी ताज़ा तरीन युवा पीढ़ी को सबसे ज्यादा एकाकीपन और अवसाद का सामना करना पड़ रहा है कियोंकि पिछले कुछ दशकों में जीवन की गति जिस तरह से परिवर्तित हुई है उसने इसी युवा पीढ़ी को अधीर और असंवेदनशील यह अत्यधिक संवेदनहीन बनाया है।
कुछ हद तक इस बात में सच्चाई नज़र आती है की कदा चित यह कोरोना विषाणु चीन द्वारा ही या तो निर्मित है यह उनकी किसी अनुसन्धान की गलती का नतीजा है जिसने पूरे विश्व को मजबूर कर दिया है घरो में बंद रहने के लिए हालांकि इस की वजह से हम काफी हद तक इस पर काबू पाने में सफल हो रहे है, विशेष कर भारत जैसे देश में ,जहा लॉक डाउन होने का बाद भी उम्मीद नहीं थी की भारतवासी इतनी अच्छी तरह से सहयोग देंगे, वही दूसरी तरफ इसके कुछ अद्भुत और बेहद सुखद परिणाम भी सामने आ रहे है।
इन दिनों प्रकृति अपने पूरे जोश में फल फूल रही है और हर तरफ मानव कल्याणकारी शुद्ध वायु एवं सकारात्मक ऊर्जा तरंगे उत्त्पन हो रही है।
१ . प्रदुषण का नामो निशाँ नहीं है।
२ . सभी नदियाँ उत्तम रूप से स्वच्छ हो गयी है एवं उनका जल जलीय जीव जन्तुओ के लिए उत्तम है।
३ . हमारे मुज़फ्फर नगर से १२० किलोमीटर दूर स्तिथ कोटद्धार की मनोहर शिवालिक पहाड़ियां लगभग १०० वर्षो के पश्चात दृश्यमान हो रही है।
४ . सम्पूर्ण पृथ्वी को लगभग एक नव जीवन मिल गया हो जैसे।
५ . बहुत संभव है की इस शुद्ध वातावरण से विक्षित हुई ओजोन की परत भी काफी हद तक अपनी पुरानी सही स्थिति में आ जाये , यदि ऐसा हो पाया तो यह बहुत चमत्कारिक एवं सुखद होगा सम्पूर्ण पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र के लिए।
यह लेख लिखने के समय तक प्रमाण आ चुके है वैज्ञैनिको द्वारा की ओजोन परत ने अपने आप को पुनः आदर्श यथा स्थिति में प्राप्त कर लिया है। वास्तव में अविश्वसनीय।
परन्तु यह चीजें सोचने पर भी विवश करती है की जिस सादगी और सरलता, सहजता से पूरे विश्व में मनुष्य आज जीवन व्यतीत कर रहा है , तो किया हम कुछ खो रहे है यह फिर वह चका चोंध वाला जीवन ही सब कुछ है जीने के लिए। इस विचार पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है , कोरोना विषाणु के कहर से निजात पाने के बाद भी। कियोंकि मनुष्य की दीर्घ कालिक भलाई और सद भावनापूर्ण जीवन के लिए यह अत्यंत आवश्यक है की हम इस बात को माने की "हम प्रकृति से है , प्रकृति हम से नहीं "
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ReplyDeleteNice ! Keep it up Neelabh Ji !
ReplyDeleteकदाचित् अत्यंत उत्तम विचार प्रकट किए हैं आपने! आपका स्वागत है इस प्रकार की बुद्धिमत्तापूर्ण लेख के लिए।
ReplyDeleteReally the thought behind the nicely written set of the of the good words itself reflecting to think about reallity of life and importance of nature power. Though indian Indian has given the good example to adopt lockdown in unexpected way but still difficult to say how our country is safe enough to win over this challenge Covid-19.
ReplyDeleteI feel this write-up would encourage senseble human being to think about great need of the hour to understand the valuble encient culture of 'Bhartiya jeevan shaili" in coming time.
Thanks to all
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